Sunday, January 22, 2012

मुझे मेरा प्यार लौटा दो *****


यह कविता 'साहित्य प्रेमी संध' के काव्य संग्रह में छपी हुई हैं 

"टूटते सितारों की उड़ान "



मेरी कुछ यादे तुम्हारे पास पड़ी हैं *****
मेरा प्यार !वो चाहत ! तुम्हारे पास पड़ी हैं *****
मुझे वो यादें लौटा दो *****
मुझे मेरा प्यार लौटा दो *****








किताबो में रखा वो मुरझाया फूल ****
खुश्बुओ से सराबोर वो मेरे ख़त ****
मेरी वो पायल ****
मेरा वो रुमाल ****
मेरा वो दुप्पटा ****
मुझे मेरा वो सामान लौटा दो ****
मुझे मेरा प्यार लौटा दो ****





कुछ दिल के अरमान लिपटे हैं**** 
चंद बंडलो में **** 
कुछ जर्द पत्ते सिमटे हैं ****
हथेलीओ में****
चंद यादों के पल रेत के महल से ****
ढह गए हैं ****
मुझे वो एहसास लौटा दो ****
मुझे मेरा प्यार लौटा दो ****  




चंद दूर हम साथ चले थे ****
हाथो में हाथ लिए ****
मेरे उड़ते हुए गेंसू ****
तेरा कनखियों से मुझे तकना ****
मेरा खिलखिलाना ****
तेरा शरम से झुक जाना ****
मेरा ठहाका लगाना ****
मुझे वो नैनो की चिलमन लौटा दो ****
मुझे मेरा प्यार लौटा दो ****




सावन की वो पहली फुहारें****
जब हमतुम इक छज्जे में सिमटे थे ****
कुछ भीगे तुम थे ****
कुछ गीले हम थे ****
मेरी जुल्फों से रिसती वो बुँदे ****
तेरी प्यास बुझती वो नजरे ****
मेरे कंधे को छूते तेरे हाथ **** 
मेरे कंपकंपाते वो होंठ ****  
मेरी अश्को से भीगी वो कोरे ****
क्या लौटा सकते हो वो भींगी रातें****
मुझे वो भींगा सावन लौटा दो ****
मुझे मेरा प्यार लौटा दो****




कभी पेड के नीचे था ****
चमेली के फूलों का बिछौना ****
खुशबुओ से भरा माहौल ****
तेरी गोद में सिर था मेरा ****
मेरी जुल्फों को सहलाती तेरी उंगलियाँ ****
जिनमें बसी थी मेहँदी की खुशबु****
उस दिलकश रात में ****
चाँद कही गुंम था****
 सितारों से भरे आकाश में ****
हम इक दूजे की बांहों में समाए ****
भोर का इंतजार कर रहे थे ****
 मुझे वो सर्द रात लौटा दो ****
मुझे मेरा प्यार लौटा दो *********!



   मुझे मेरा प्यार लौटा दो  

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Thursday, January 12, 2012

दिलकश चाँद !


दिलकश  चाँद !


यह कविता 'साहित्य प्रेमी संध' के काव्य संग्रह में छपी हुई हैं 








 " चलो दिलदार चलो 
  चाँद के पार चलो "

तुम्हारी चमकती आँखों में छांककर पूछती--
और तुम अपनी मदमस्त आँखों को घुमाकर कहते --

" हम हैं  तैयार चलो "--

और मैं  ख़ुशी के हिंडोले में सवार 
दू.....र... आकाश में अपने पंख पसार 
बादलो से परे,
चाँद की पथरीली जमीं पर,
उड़ते -उड़ते घायल हो चुकी हूँ ,
अपने लहू -लुहान जिस्म को समेटे ,
कातर निगाहों से तुम्हे धूर रही हूँ  ,
और तुम दू....र खड़े मुसकुराते हुए,
मानो,मेरा मजाक उड़ा रहे हो---

"  चाँद को छूने वाले ओंधे मुंह जो गिरते है "








मैं  सोच रही हूँ  की यह चाँद दूर से कितना ,
हसीन !कितना दिलकश था !
क्यों मैने इसके नजदीक जाने का साहस किया !                      





तुम भी तो ' राज' ! 
उस चाँद की तरह हो ,
जिसे मैं  देख तो सकती हूँ  ,
पर छू नही सकती ----?





अपने तन -मन को घायल कर --
आज सवालों के घेरे में खड़ी हूँ  --!

दू......र से आवाज आ रही हैं  -- 

" आओ खो जाए सितारों में कहीं 
छोड़ दे आज ये दुनिया ये जमीं  " 

चलो दिलदार चलो 
चाँद के पार चलो 
हम हैं तैयार चलो ~~~~~~~!