Tuesday, October 11, 2011

प्रेम -दीवानी









तुम ..वो ..ऊँचाई हो ...
जिसे छूने के प्रयास में  -
मैं  बार- बार गिरी  -गिरती  गई -
परत -दर -परत तुम्हारे सामने -
खुलती रही ---बिछती रही -
पर --तुम्हारे  भीतर  कही  कुछ  उद्वेलित नही  हुआ ----|
मेरी आत्म -- स्वकृति को तुमने  कुछ  और ही अर्थ  दे  डाला --?
मै अंधी गुमनाम धाटियो मे तुम्हारा नाम पुकारती रही -----
धायल  !
खुरदरी --पीड़ा -जनक -!!
अकेलेपन  का एहसास !!!
ल--- म्बे  समय  से झेल रही हु ------?
 नाहक ,तुम्हे बंधने की कोशिश ---
" छलावे के पीछे भागने वाले  ओंधे मुंह गिरते है -"
इस तपती हुई मरुभूमि मे ----
चमकती -सी बालू -का -राशि ---
जैसे कोई प्यासा हिरन ,पानी के लिए ----
कुलांचे  भरता जाता है ---                  
अंत--  मे  थककर दम तोड़ देता है ---
तुम्हारे लिए --------
इस मरु भूमि में  ---मैं  भी भटक रही हूँ ----
काश -- कि --तुम ----मिल जाते --------|








कभी -कभी सारी दुनियां  की चाहत मिल जाती हैं !
कभी-कभी एक की चाहत को तरसते रहते हैं !!

Saturday, October 1, 2011

* आहत-मन *



आहत-मन  






दिल के टूटने की आहट  कहाँ होती हैं ****
चंद किरचे  जब सुई -सी चुभती हैं ****
तब दर्द का एहसास होता हैं ****
मन धायल हो कराहता हैं ****
दिल टूट जाता हैं ****
आँखों से अश्क बहते हैं ****
गम -ऐ - इश्क किसे सुनाऊ ****
कोई तो अपना नहीं ?
इस बेगानी सरजमी पर --
किसे तलाशती  मेरी आँखे ****
कहाँ खोजू अपनापन****
क्यों हर कोई मस्त हैं ?
क्यों अपने नहीं देते आसरा ?
हम बेगानों को हसरत से  तकते हैं ****
जब छला जाता हें इस दिल को *****
हम जख्मो की तरह रिसते  हैं****
हाथो से फिसलती बालू -का राशी****
हम रेत के घरोंधे बीनते हैं ****
क्यों पत्थरो पर ठहरता नहीं पानी ?
हम लहरों की तरह सर फोड़ते हैं ****
हाथो में लिए पत्थर जब लोग निकलते हैं ****
तब हम क्यों शीशो के महलों में रहते हैं ****
वो हाथो में उठाते हैं खंज़र जब भी --?
हम क्यों सरे- आम कत्ल होते हैं ****
क्यों बिना गुनाह सजा मिलती हैं ?
गुनहगार यु ही खुले आम घूमते हैं ?
समय छलावे की मानिंद हाथो से निकला जा रहा हैं ---
छलनी पकड कर हाथो में वक्त यु ही जाया करते हैं ---
इसी कशमकश में गुज़र रही हैं जिंदगी ---'दर्शन'---
तुम्हें अपनाऊ या छोड़ दूं  -------क्या करू दिलबर **************??? 
        







  
















तल्खियाँ  बहुत मिली जमाने की यारब !
तेरा दीदार मिल जाता तो कोई बात थी !