Thursday, September 22, 2011

* दीदारे -इश्क *






क्यों  ढूंढती  हैं अंखिया तेरे दीदार को सनम !
एक तेरी याद काफी नहीं,मुझे मिटाने के लिए !!  
एक बूंद मै'य को तरसते हैं होठ मेरे ,
कभी आकर मयखाना तो बता दे जालिम !!
उल्फत की ठोकरों ने बना दिया पत्थर हमे !
हम दिल को ढूंढते हैं ,दिल हमको ढूंढता हैं !!
अंधेरो से कहो कोई और घर ढूंढें ,
मेरे घर सजी हैं डोली उजालो की !!
आज बिजली नहीं हैं मेरे आँगन में सनम !
सितारों से कह दो मेरा घर सजा दे ! ! 
उनकी यादो के कमल, उनके प्यार का एहसास !
बस ! यही खजाना तो बचा हैं मेरे पास !!
आज भी  बिजली नहीं  मेरे घर अँधेरा हैं !
रौशनी ढूंढ कर लाओ के दूर सवेरा हैं  !!
ज़हर का प्याला हाथ में पकडाया उस संगदिल ने !
हम तो पहले से ही मर चुके थे,उसकी यादो के बवंडर में !!
अँधेरा मांग रहा था रौशनी उधार !
एक तिल्ली न बची आशियाँ जलाने के लिए !!



Thursday, September 15, 2011

"इश्क पर जोर नहीं "









तुझको भुलाने की कसम खाई हैं खुद से सनम !
तुझको भुलाना मेरी फितरत नहीं मेरी मज़बूरी हैं दिलबर !!
यह न कहना की हम बे -वफ़ा थे सनम !
बा -वफ़ा हमने भी दोस्ती खूब निभाई हैं दिलबर !!
तुझसे तो मिलना अब नामुमकिन हैं सनम !
ये दिल फिर भी तेरा सौदाई हैं दिलबर !!
अब जो बिछड़े तो शायद जन्नत में मिलेगे सनम !
तेरा इंतजार रहेगा आखरी दम तक दिलबर !!
साथ तेरा चाह था उम्रभर के लिए सनम !
बीच में ये रुसवाईयो का जंगल किसलिए दिलबर !!
इश्क पर जोर नहीं' मैं समझती हूँ सनम !
ये इश्क ला -इलाज होगा,ये समझ नहीं आया दिलबर !!
हंस -हंस के गैरो से क्यों बाते करते हो सनम !
इक तेरी मुस्कान के तलबगार हम भी हैं दिलबर !!
तेरी राहो से क्यों नहीं मिलती राहे मेरी सनम !.
प्यार का मका खाली था,राहे भी भटक गई दिलबर !!
मुस्कुरा कर टूटे हुए दिल के टुकडो को समेटती हूँ सनम !
क्यों हर किसी को 'ईनाम' का हक़ नहीं मिलता दिलबर !!
मेरी चाहत पर यकी क्यों नहीं होता तुझको सनम !
यह कसक प्यार की हैं, कैसे समझाऊ तुझको दिलबर !!  
चाहत पर किसी का जोर क्यों नहीं चलता 'दर्शन '!
तन्हाइयो में अक्सर यही सोचती  रहती हूँ मैं  दिलबर !! 

   
     
   

Wednesday, September 7, 2011

अकेलापन !!!!!








मैं कल भी अकेली थी --मैं आज भी अकेली ही हूँ ?
रहू  कैसे तेरी यादों के खंडहर से दूर जाकर --
क्यों सलीब पर लटकाऊ अपनी भावनाओ के पिंजर को 
इक यही तो मेरी पूंजी हैं -इस खजाने को किस पर लुटाऊ 
कहने को तो मैं जिन्दा हूँ -होश भी हैं मुझको
फिर यह आत्मा क्यों भटकती हैं सिर्फ तुम्हे पाने को 
जिन्दगी की इस अधूरी चाह को कैसे ढूँढू ? कहाँ ढूँढू -
कहाँ फैलाऊ अपना आँचल! कहाँ माथा रगडू
इस स्वार्थी लोक में मैंरा तो कोई सगा नहीं ?
सभी बेगाने हैं यहाँ मेरा तो कोई अपना नहीं !    





वो  लोग जिनको समझती थी जिन्दगी अपनी !  
वही लोग दिल को दुखाने की बात करते हैं !